प्यारे बच्चों आज कुछ महापुरुषों के महान चरित्र के विषय मे आपको बताती हूँ जो तुम्हें भी प्रेरणा देंगे ऐसी मुझे आशा है ।
रामकृष्ण परम हंस
बंगाल की धरती ने जिन संस्कार सम्पन्न महापुरुषों को जन्म दिया है , राम कृष्ण परम हंस उच्च कोटि के संत हुए है । राम कृष्ण का जन्म हुगली जिले के कामारपुकुर गाँव मे खुदीराम चट्टोपाध्याय नामक श्रद्धालु ब्राम्हण के यहाँ हुआ था । उनकी माँ च्ंद्रमणि बहुत धार्मिक महिला थी । इन्ही के यहाँ 17 फरवरी 1836 को रामकृष्ण परमहंस का जन्म हुआ था । रामकृष्ण का बचपन का नाम गदाधर था । वे कुशाग्र बुद्धि के बालक थे । वे बहुत अच्छा गाते भी थे । अध्यापक उन्हे बहुत प्यार करते थे । वे काली के परम भक्त थे । इनका विवाह शारदामणि से हुआ जो आगे चल कर शरदादेवी के नाम से विख्यात हुईं । परमहंस जी ने उनसे पत्नी जैसे संबंध न रखे बल्कि उन्हे भी पूज्या माना । रामकृष्ण उच्चकोटि के भक्त थे साथ ही वे समाजसुधारक और देशप्रेमी भी थे । जिस समय वे कार्य क्षेत्र मे आगे आए उस समय भारत मे लोग अपनी मर्यादा को त्याग कर अङ्ग्रेज़ी शिक्षा और संस्कृति को अपनाने मे लगे थे । स्वामी जी ने भारतीय संस्कृति के प्रति देश के लोगों ध्यान आकर्षित कर उनमे देश प्रेम जाग्रत किया । स्वामी जी के अंदर अहंकार लेशमात्र भी नहीं था । वे बड़ी सरल बंगला मे उपदेश देते थे , उनके उपदेशों का संग्रह रामकृष्ण आश्रम द्वारा किया गया है । स्वामी जी ने 51 वर्ष की उम्र तक देशवासियों का मार्ग दर्शन करने के बाद अगस्त 1886 मे प्राण त्याग किया ।
बाल गंगाधरतिलक
19 वीं शताब्दी के आरंभ मे छोटे छोटे स्वतंत्र देशी राज्य आपस मे लड़कर कमजोर हो गए थे । दक्षिण मे मराठा राज्य भी कमजोर हो गया था । देश आर्थिक , राजनीतिक और प्रशासनिक रूप से अंग्रेजों का उपनिवेश बन चुका था । ऐसे वातावरण मे महाराष्ट्र के रत्नागिरि जिले मे 23 जुलाई 1856 ईसवी को बालगंगाधर तिलक का जन्म गंगाधर पंत नामक गरीब ब्राम्ह्ण के घर मे हुआ था। उनके पिता संस्कृत के विद्वान थे । तिलक मे भी विलक्षण प्रतिभा थी । खेल खेल ही मे इन्होने गणित और संसकृत की इतनी शिक्षा प्राप्त कर ली कि पाठशाला जाने पर अध्यापकों से कुछ भी सीखने की आवश्यकता ही न रही ।
इनहोने डेक्कन कालेज से बी ए और बम्बई से एल एल बी की परीक्षा उत्तीर्ण की । शिक्षा समाप्ति के बाद आपने संसार के करी क्षेत्र मे उतर कर अनेक कार्य किए । चौदह वर्ष की आयु मे ही आपका विवाह सत्यभामा के साथ कर दिया गया । तिलक को बचपन से ही गीता से अगाध प्रेम था । आपने मांडले जेल मे ही समय सदुपयोग करते हुए मराठी भाषा मे गीता का सरल भाष्य "गीता रहस्य " तैयार किया । इसमे आपके प्रकांड पांडित्य का प्रदर्शन मिलता है । तिलक को लोकमान्य की पदवी इसलिए मिली थी कि उन्होने लोकसाधारण की व्यथा को समझा था । उसके उपचार के लिए अथक परिश्रम किया । तिलक ने ही सर्व प्रथम देश को " स्वराज्य हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है "। यह महामंत्र सिखाया था । अंत समय मे आप ज्वर से पीड़ित रहे थे तथा 31 जुलाई 1920 को आपका स्वर्गवास हो गया ।
अभी इतना ही फिर मिलेंगे कुछ और महापुरुषों के बारे मे जानकारी लेकर ।
15/12/2012
आज आपको गुरु नानक देव जी विषय मे बताती हूँ ।
पंद्रहवीं शताब्दी मे गुरु नानक का आविर्भाव हुआ । उनके पिता का नाम बेदी कालू चंद पटवारी और माता का नाम त्रप्ता देवी था । कार्तिक पुर्णिमा के दिन पंजाब के तलवंडी गाँव मे नानक का जन्म हुआ । बचपन से नानक का ध्यान साधुओं के साथ लगा रहता था । उनकी पत्नी का नाम सुलक्षणी देवी था । उनके दो पुत्र हुए , उनके नाम श्री चन्द्र और लक्ष्मीदास थे । परंतु संसार मे नानक का मन रमा नहीं । नानक देव जी ने भारत के सभी तीर्थ स्थानो का भ्रमण किया , कई जगहों पर नानक जी ने धर्मशालाए बनवाई । अफगानिस्तान , ईरान इत्यादि जगहों पर जाकर उन्होने अपने विचारों का उपदेश दिया । कई मुसलमान व्यक्ति भी नानक जी के शिष्य हुए । उनके अनुयायी ग्रंथसाहब को बड़ी श्रद्धा से पढ़ते है उसमे गुरु जी की वाणी बड़े प्रमाण मे संग्रहीत है । इस धर्मग्रंथ मे कबीर , रविदास , मीराबाई, नामदेव, आदि महान संतों के काव्य संकलित किए गए है ।
चैतन्य महाप्रभु का जन्म विक्रम संवत 1542 मे होली की पुर्णिमा के दिन पश्चिम बंगाल के नवद्वीप नामक गाँव मे हुआ था ।
उनके पिता का नाम जगन्नाथ मिश्रा और माता का नाम शची देवी था । बालक का नाम विशंभर रखा गया , प्यार से माता पिता इन्हे निमाई कहते थे । चैतन्य ने लड़कों को पढाने के लिए एक पाठशाला खोली , विध्यार्थियों को निमाई बड़े लगन और मेहनत से पढ़ाते थे और मित्रवत व्यवहार करते थे ।
अपनी माता के आग्रह पर उन्होने पंडित वल्लभाचर्य की पुत्री लक्ष्मी देवी से विवाह कर लिया । दुर्भाग्यवश इनकी पत्नी की अल्प समय मे ही मृत्यु हो गई । अपनी आयु के चौबीस वर्ष तक ये ग्रहस्थाश्रमी रहे । इनके गुरु सन्यासी ईश्वरपुरी थे ,जिनहोने इनके अंदर कृष्ण भक्ति की अलख जगाई । वे बड़े ही भक्ति भाव से मगन होकर कृष्ण के भजन गाकर लोगों मे भक्ति की भावना भरने लगे। गौर वर्ण होने के कारण लोग इन्हे गौरांग भी कहते थे।
जगन्नाथ पुरी मे आज भी उनका मठ विध्यमान है । अड़तालीस वर्ष की आयु मे रथ यात्रा के दिन उनकी जीवन लीला समाप्त हो गई । उनका शरीर तो चला गया परंतु उनका नाम आज भी जीवित है । उन्होने भक्ति जो धारा बहाई वह कभी नहीं सूखेगी हमेशा लोगों पवित्र करती रहेगी ।
पंडित मदन मोहन मालवीय :-
इनका जन्म 25 दिसंबर , 1861 को इलाहाबाद मे पंडित ब्रज नाथ चतुर्वेदी के घर मे हुआ था । इनकी माता भुना देवी धार्मिक और दयावती महिला थी । मालवीय जी पर इनके माता पिता के गुणों का विशेष प्रभाव पड़ा । इनकी प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही हुई । आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण आप बी ए से आगे न पढ़ सके और इलाहाबाद के जिला स्कूल मे अध्यापक हो गए , जहां तीस साल तक कार्य किया । 25 वर्ष की अल्पायु मे ही इनकी ख्याति दूर दूर तक फैल गई । इनकी वाणी मे बड़ा ओज था । जब वे भाषण करते तो लोगो पर जादू सा हो जाता था । मालवीय जी ने बड़े परिश्रम से न्यायालय मे स्थान दिलाया ।राष्ट्र भाषा के प्रचार और प्रसार के लिए मालवीय जी ने नागरीय प्रचारिणी सभा और हिन्दी साहित्य सम्मेलन की स्थापना की । आप शिक्षा को बहुत अधिक महत्व देते थे और शिक्षा के माध्यम से समाज के स्तर को ऊंचा उठाना चाहते थे । आपके बहुत प्रयासों के कारण ही काशी हिन्दू विश्व विद्यालय की नींव राखी जा सकी । जबकि आपके पास पैसे नहीं थे ।इस कम को पूरा करने के लिए आपने लोगो से मदद भी मांगी और पर्याप्त सहयोग भी प्राप्त किया । आप लंबे समय तक यहाँ के कुलपति भी रहे । आपके परिश्रम का फल यह हुआ कि काशी हिन्दू विश्व विद्यालय का नाम पूरे विश्व मे प्रसिद्ध हुआ । 1946 मे इस महान शिक्षाशास्त्री का देहावसान हो गया । परंतु काशी हिन्दू विश्व विद्यालय के कारण उनका नाम अमर हो गया । आगे फिर मिलेंगे कुछ और अन्य महापुरुषों के विषय मे जानकारी लेकर ।
apke sujhvon ka swagat hai .
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