Sunday, 9 December 2012

बालकों के माली से

ये नन्हें नन्हें फूल , भरी इनमे सुगंध मतवाली ।

इनको न बनाना धूल , समझना रे उपवन के माली ॥


सिंचन का करना दान , प्यार के मंजुल मधुर करों से।

ये बिखेरे मधुर मुस्कान , हम सब देखे अपलक नैनों से ॥


कच्ची है कलियाँ आज , कल ये फूल खिलेंगे रंग बिरंगे ।


नित नया सजेगा साज , भरे रहेंगे नित नयी उमंग मे ॥


करना रुचिप्रद रसदान , फले तेरी आशा चिर प्यासी ।


जब होगा मधुकर गान , फूलेंगे निरख सुमन मधुमासी ॥



यह अटूट सत्य है कि बच्चों का दिमाग और भावनाएं बहुत ही कोमल होती है । अपरिपक्व बुद्धि के साथ उनका ज्ञान का दायरा भी बेहद संकीर्ण होता है । वे अपनी छोटी सी दुनिया मे मस्त रहते है । उनके प्रेरणा स्त्रोत्र उनके माता पिता ही होते है । इसलिए वे अपना हर काम माता पिता की तरह करते है । चाहे वह गलत ही क्यों न हो । यह सिर्फ कहने की बात है कि बालक कुछ समझते नहीं है । वे सब सुनते और समझते है और अपने छोटे से ज्ञान के आधार पर वही करना चाहते है । यह कहना गलत नहीं होगा कि माता पिता के आचरण और संस्कारों का ही प्रभाव बच्चों पर पड़ता है । हम उनके सामने जैसा आचरण प्रस्तुत करेंगे वे उसकी नकल कर वैसे ही हमारे सामने करना करना आरंभ कर देंगे । जैसी शब्दावली का प्रयोग और व्यवहार वे हम बड़ों को आज करते देखेंगे वैसा ही कल वे हमारे साथ भी करेंगे तब शायद हम बड़े इस बात को भूल चुके हों कि ये बेल हमारी ही बोयी हुई है कल हमने किसी और के लिए इनके सामने ऐसा कहा होगा तभी आज वो थोड़ा ज्यादा होकर हमारे सामने ही आ रहा है । ये सुंदर बगिया आपकी अपनी है इसे जितना सुंदर ढंग से आज आप सजाएँगे उतने सुंदर फूल खिलेंगे । जो व्यवहार आप अपनी बढ़ती उम्र के पड़ाव पर अपने बच्चों से चाहते है उसकी नींव आज ही अपने व्यवहार से आपको बनानी होगी । आप जब भी मकान बनाते है तब सबसे पहले नींव कि मजबूती का ध्यान रखते है तब जाकर कहीं सुंदर इमारत बन कर खड़ी हो पाती है । यदि आप बच्चों से सिर्फ अपेक्षाएं ही रखेंगे तो भूल जाइए कि आपकी अपेक्षाएं पूरी होने वाली है । पेड़ पौधों को जब हम खाद पानी से सींचते रहते है और समय समय पर कटाई छंटाइ करते है तभी सुंदर फूल और मधुर फल मिलते है । ठीक इसी तरह बच्चों की फुलवारी होती है ।
बच्चों की नकल के बड़े सुंदर उदाहरण आप अक्सर अपने घरों मे बच्चों के साथ देखते ही होंगे । कई बार ये मन को पुलकित कर देते है किन्तु कई बार ये हमे अचंभे मे भी डाल देते है ।
निष्कर्ष यह है कि बच्चे छोटे हों या बड़े उन्हे सुदृढ़ ,आचरणवान बनाना हमारा काम है ।

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