Thursday, 13 December 2012

वृद्ध और बालक

जीवन का दीर्घपथ पार कर वृद्ध एक  ,
दोनों हाथों को जमीन पर  टेक
थका सा क्लांत बैठा है ।

अस्त व्यस्त रजत केश ,
क्षीण काय ,शून्य नेत्र ।


नष्ट हुई आशाएँ ,
छूट चुके संग साथ ।
 भग्न हृदय , भग्न प्राण ,
एकाकी - असहाय ,
जीर्ण शीर्ण अबल काय ।

घोरतर अंधकार ,
दुर्गम अनंत पार ,
आगे अपरिचित देश ।
अश्रु तक शेष नहीं ,
पथिक हताश हाय !!

जीवित नहीं , मृत नहीं ,
भाग्य की विडिम्बना -
ओह , यह वृद्ध पथिक !
जीवन संग्राम का -हारा हुआ ,
भटका सा प्राण एक ।
देखा नहीं दिनकर ने रजनी का अंधकार ,एक शिशु -
    मोहक मुखारविंद ,
 कुञ्चित मृदु अलकजाल,
कज्जल सुविन्दु भाल ,
अंग अंग पुष्ट स्वच्छ ,
शीश घृत मयूर पिच्छ ।

सर्वथा अपरिचित यह आनंद रूप ,
जगमग कर  , नख , चरण ,
दौड़ता ही आया है -
हंसता हुआ  खिलता सा ,
करुणा से भरा हुआ सा ,
अरे ! तू थक गया ?
उठ तो ! चल मेरे साथ !
नन्हें कर पल्लव से ,
पकड़ बूढ़े का हाथ ।

अश्रु पूरित   नेत्रों से ,
भाव भरे नैनों से , 
अवरुद्ध कंठ , वृद्ध , 
समेट  कर शक्ति का ,
असीम स्रोत , कर को उसकी ओर बढ़ा ,
उठ कर चल दिया वृद्ध ।

मुझको छकाया तूने दादा !
नहीं मुझको छकाया तूने बाबा !
नाचता ,फुदकता यह शैशव का देवता ,
किसने छकाया किसे , कौन छका आज यहाँ ?
वृद्ध या बालक निरुपाय ॥


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