Wednesday 12 December 2012

"आज बात करते है स्वामी विवेकानंद जी की "

प्रिय बच्चों अपने स्कूलों मे तुमने कई बार अपनी अध्यापिकाओं के साथ स्वामी विवेकानंद जी के विषय मे पढ़ा और सुना होगा । मुझे तो विवेकानंद जी  का व्यक्तित्व बहुत ही प्रभावित करता रहा है ।आशा है कि तुम्हें भी थोड़ी बहुत प्रेरणा देगा । 

स्वामी विवेकानन्द जी का जन्म कोलकाता  मे विश्वनाथ दत्ता के कुलीन परिवार मे 12 मई 1863 को हुआ था । कोलकाता उच्च न्यायालय के अटार्नी दत्ता बहुत ही उदार एवं प्रगतिशील व्यक्ति थे । विवेकानंद  की माँ भुवनेश्वरी देवी धार्मिक विचारों वाली महिला थी । स्वामी विवेकानंद का बचपन का नाम नरेंद्र नाथ था और उन पर अपने पिता के तर्कसंगत विचारों तथा माँ  की धार्मिक प्रवृत्ति का असर था । विवेकानंद जी पढ़ाई लिखाई मे बहुत तेज थे । स्काटिश चर्च कॉलेज के प्राचार्य डा ॰ विलियम हस्टी ने उनके बारे मे लिखा है ; मैंने काफी भ्रमण किया है लेकिन दर्शनशास्त्र के छात्रों मे ऐसा मेधावी   और संभावनाओं से परिपूर्ण छात्र कहीं नहीं दिखा यहाँ तक कि जर्मन विश्वविद्यालयों में भी नहीं दिखा । स्वामी विवेकानंद ने धर्म ग्रन्थों के अलावा विविध साहित्यों का भी गहन अध्य्यन किया । वह ब्रम्ह समाज से भी जुड़े लेकिन वहाँ भी उनका मन नहीं लगा । एक दिन वह अपने मित्रों के साथ स्वामी रामकृष्ण परमहंस के यहाँ गए । उनके मित्र बताते हैं कि जब नरेन्द्रनाथ ने भजन गाया तब परमहंस बहुत प्रसन्न हुये । कर्म शील नरेंद्र नाथ ने परमहंस से पूछा कि क्या आप ईश्वर मे विश्वास करते है ? क्या आप उन्हे दिखा सकते है ? परमहंस ने उनके सवालों का जवाब हाँ मे दिया । हलांकी विवेकानंद ने पहले परमहंस को अपना गुरु नहीं माना लेकिन काफी समय तक उनके संपर्क मे रह कर वह उनके परम शिष्य बन गए । वर्ष 1893 में उनके ओजपूर्ण भाषण से ही विश्वमंच पर न केवल हिन्दू धर्म बल्कि भारत की भी प्रतिष्ठा कायम हुई । 11 सितंबर 1893 को इस संसद मे जब उन्होने अपना भाषण ,"   अमेरिका के भाइयों और  बहनों " से प्रारम्भ किया तब काफी देर तक तालियों की गड़गड़ाहट  गूँजती रही थी।  उनके ओजपूर्ण भाषण से लोग बहुत ज्यादा अभिभूत हो गए थे ।
स्वामी विवेकानंद ने देश और दुनिया का काफी भ्रमण किया । वह नर सेवा को ही नारायण सेवा मानते थे । उन्होने रामकृष्ण के नाम पर रामकृष्ण मिशन और मठ की स्थापना की । 4 जुलाई 1902 को उन्होने बेल्लूर मठ  मे अपने गुरु भाई स्वामी प्रेमानन्द को मठ के भविष्य के बारे मे निर्देश देने के बाद महासमाधि ले ली ।
एक आध्यात्मिक हस्ती होने के बावजूद स्वामी विवेकानन्द युवाओं के प्रेरणा स्रोत थे । उन्हे देश के युवाओं से बहुत प्यार था । उनका कहना था कि देश के मजबूत युवा ही हमारे हमारे मजबूत और अखंड राष्ट्र के कर्णधार है ।

आगे फिर मिलेंगे कुछ और नई बातों के साथ ।

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