गर्मी के दिन आते हैं
हमको बहुत सताते है
कहाँ खेलने जायें हम ?
कहाँ खेलने जायें हम ?
तेज़ धूप में निकले दम
खेल के मैदन हों गरम
कहीं चैन न पाते हम
मन ही मन झुंझुलाते हम
हाए ये गर्मी ,उफ ये गर्मी ।
v बुद्धू बक्सा
कहते जिसे सब बुद्धू बक्सा
लगता मुझे वो दोस्त है सच्चा
नींद नहीं जब आती मुझको
देख इसे सो सकती हूँ
देख इसे सो सकती हूँ
मम्मी पापा जब न हों घर में
समय पास करता पल भर में
स्कूली किताबें जब बोर करें
मुझमें नया ये जोश भरे
देश विदेश की खबरें लाता
कहते इसे क्यों बुद्धू बक्सा
गर्मी
इम्तेहानों की हुई विदाई
गर्मी आई ,गर्मी आई
बच्चों की दुनिया के
अंदर बाहर गर्मी भीतर ठंडी
टी॰वी ,केरोम और कम्प्युटर
ठंडा शर्बत मस्त क्लांदर
द्वारा :- दिव्या बाजपेई
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